कूते की काली रोटी

एक दिन टहलते – टहलते अकबर व बीरबल एक गाँव में जा पहुँचे। रास्ते में अकबर ने एक कूता देखा, जो सूखी-बासी, जली हुई रोटी खा रहा था।अकबर ने बीरबल को परेशान करने की नीयत से कहा, “ देखो बीरबल! वह कूता ‘काली’ खा रहा है।”बीरबल समझ गया कि बादशाह ने कहां चोट की है। उसने तुरंत उतर दिया , “ हुज़ूर! यह तो ‘नेमत’ है उसके लिए।

वैसे तो बात यही खतम हो जानी थी। लेकिन यह सुनकर अकबर आपा खो बैठे। जोर से बोले, “ बीरबल, क्या तुम्हें पता नहीं हमारी माँ का नाम नेमत है। और तुम कहना चाहते हो कि वह कूता “नेमत” खा रहा था।” समानपूर्ण लहजे में बीरबल बोला , “आपने भी तो कहा था की कूता “काली” खा रहा है, और आपको पता है कि मेरी माँ का नाम काली है।” अकबर बोले, “ ऐसा कहने के पीछे मेरी कोई कुमशा नहीं थी , रोटी तो वास्तव में जली हुई काली पड़ी थी ।

मैंने भी आपकी बात का क़तई बुरा नहीं माना था, हुज़ूर !” बीरबल बोला , “ मेरा कहने का मतलब तो यह था की रोटी जैसी भी है , उस भूखे कूते के लिए किसी नेमत से कम नहीं थी। आपकी माँ का अपमान नहीं करना चाहा था मैंने । “ यह सुनकर बादशाह चुप हो गए ।

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