एक दिन बीरबल से बादशाह अकबर बोले, तुम्हारी किसी धार्मिक पुस्तक में यह लिखा है कि करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु अकेले ही नंगे पैर दौड़ पड़े थे उसकी मदद करने कोई भी नहीं था उनके साथ । ऐसा क्यों हुआ ? क्या उनके पास कोई नौकर-चाकर न था । बीरबल बोला ,” हुज़ूर, सही मौक़ा मिलने पर मैं आपके इस सवाल का जवाब दूँगा । कई दिन बाद बीरबल ने उस नौकर को अपने घर बुलावा भेजा, जिसका काम रोज़ सुबह – शाम बादशाह के पोते को टहलाने लेके जाना था । बीरबल ने उसे मोम का एक पुतला दिया, जो हूँबहूँ बादशाह के पोते जैसा प्रतीत हो रहा था ।

बीरबल ने उस नौकर से कहा, आज बादशाह के पोते को घुमाने ले जाने के बजाय यह पुतला ले जाना । फिर झील के पास पहुँच कर ऐसा नाटक करना मानो तुम्हें ठोकर लगी हो । ऐसा करते समय कुछ इस तरह से फिसलना कि पुतला झील में जा कर गिरे । अगर तुमने सफ़ाई से इस काम को अंजाम दे दिया तो तुम्हें भारी इनाम दूँगा ।उस नौकर ने वैसा ही किया जैसे ही वह झील के पास पहुँचा कि फिसल गया और फिसलते – फिसलते वह पुतला उसने पानी में फ़ेक दिया । राजमहल के परकोट पर खड़े अकबर ने भी यह सब देखा वे तेज़ी से भाग कर झील पर पहुँचे और कपड़े पहने हुए ही पानी में छलांग लगा दी ।

लेकिन जब उन्होंने अपने पोते की जगह उसके जैसा ही पुतला देखा तो उन्हें गलती का आभास हुआ ।बीरबल भी वही झील के किनारे खड़ा था । वह बोला, हुज़ूर ! अपने पोते को पानी से बाहर निकालने को आप खुद क्यों दौड़े चले आए । क्या आपके पास नौकरों की कमी है ? आप उन्हें साथ लेकर क्यों नहीं आए ? बीरबल आगे बोला, “ बादशाह सलामत ! जैसे अपना। पोता आपको बेहद प्यारा है, वैसे ही भगवान विष्णु को अपने सभी भक्त प्रिय है । यही कारण था कि अपने भक्त की करुण पुकार सुनकर वे अकेले ही दौड़ पड़े थे ।